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यूआईटी ने पट्टे बनाने में भेदभाव किया, पीड़ित ने कहा, सर्वे में नाम होने पर आवेदन के बावजूद भी नहीं बनाये गये पट्टे

संजय कुमार चौबीसा

कोटा, 21 नवम्बर। बालाकुण्ड में यूआईटी द्वारा प्रशासन शहरों के संग अभियान में एक सौ के आसपास पट्टे बनाए गए हैं, लेकिन उनमें कई पट्टे तो ऐसे हैं जिनमें भूखण्ड संख्या तक अंकित नहीं है। किस आधार पर किस भूखण्ड का पट्टा यूआईटी द्वारा बनाया गया है। और यही नहीं कई लोगों के सर्वे होने के बावजूद पट्टे के लिए यूआईटी में आवेदन करने के बावजूद भी यूआईटी द्वारा उनके पट्टे नहीं बनाये गए। यह आरोप मंगलबार को बालाकुण्ड निवासी हरिशंकर नामा ने यूआईटी पर पत्रकारों से बातचीत में लगाए। हरिशंकर नामा ने कहा कि यूआईटी द्वारा प्रशासन शहरों के संग अभियान में मनमानी की गई। जिसके चाहे पट्टे बना दिये और जिसके चाहे पट्टे नहीं बनाये। उन्होंने आरोप लगाया कि यूआईटी में दलाल और अधिकारी मिलीभगत से पट्टे बना रहे थे।

नामा ने कहा कि यूआईटी द्वारा प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत करीब सौ से अधिक पट्टे बनाए गए, लेकिन कई आवेदकों को पह से वंचित रखा गया। इसमें वे भी शामिल है। उन्होंने बताया कि उन्होंने भी प्रशासन शहरों के संग अभियान में पट्टे के लिए यूआईटी में आवेदन किय था। इस बारे में वे कई बार यूआईटी सचिव व जिला कलेक्टर से भी मिले, लेकिन कोई सुनवाई नहीं की गई। उन्होंने इस मामले को लेकर यूआईट में सूचना का अधिकार के तहत जानकारी चाही तो यूआईटी से लेकर जिला कलेक्टर तक सुचना मांगने पर नहीं मिली, बाद में उन्होंने मुख्य मचन आयुक्त जयपुर में अपील की, वहां से आदेश मिलने पर यूआईटी द्वारा बमुश्किल मुझे बालाकुण्ड में 91 पट्टों की नकल उपलब्ध कराई गई, बाकी पह के बारे में जानकारी नहीं दी गई। जिसके लिए उन्होंने पुनः यूआईटी में सूचना का अधिकार का आवेदन किया है।

सर्वे में उनका नहीं बेटे का नाम

तामा ने कहा कि यूआईटी द्वारा किस तरह से मनमानी की जाती है, उसका प्रमाण वे खुद है, यूआईटी द्वारा बालाकुण्ड में किये गए सर्वे में उन मकान का भी सर्वे में नाम है, लेकिन सर्वे में नाम उनका नहीं बल्कि उनके बेटे का है, जबकि उक्त जमीन को उन्होंने वर्ष 1982 में कब्जाधारियों इकरानामे के आधार पर खरीदी थी और तब से लेकर आजतक उनका ही कब्ज़ा चला आ रहा है। फिर भी यूआईटी ने मनमाने तरीके से उनको जगा

बेटे का नाम सर्वे में डाल दिया। 33 आवेदकों में से सिर्फएक को ही दिया पट्टा

नामा ने आरोप लगाया कि यूआईटी द्वारा बालाकुण्ड कच्ची बस्ती में खसरा नंबर 85/269, 85/270, 87, 89, 97, 120 में स्थित मकान धारकों द्वारा प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत पट्टा जारी करने हेतु न्यास कार्यालय में प्रस्तुत आवेदन को समाचार पत्र में आपत्ति सूच की विज्ञप्ति प्रकाशित करवाई गई थी। उन सभी 33 आवेदनों में से मात्र एक आवेदक सत्यनारायण शमां को ही पट्टा जारी किया गया। उन्होंने सवा उठाया कि अगर यूआईटी में उन सभी आवेदकों पर कोई आपत्ति आई थी तो फिर एक ही आवेदक का पट्टा क्यों बनाया गया। इससे यूआईटी क कार्यप्रणाली व भेदभाव नजर आता है।

नई सरकार आए तो जांच कर कार्यवाही की मांग

उन्होंने चुनाव के बाद जो भी नई राज्य सरकार आती है तो पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करवाकर दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूआईटी अधिकांश अधिकारी-कर्मचारी ठेका पद्धति पर कार्यरत हैं, जिस कारण उन्हें नौकरी का कोई डर नहीं होता। और वे मिलीभगत कर आमजन के काम को बेवजह रोकते हैं। उच्चाधिकारी भी उन पर कोई कार्यवाही नहीं कर पाते।

 

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