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शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पर मनाया चंदन महोत्सव

संजय कुमार

कोटा, 10 मई।
शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पाटनपोल पर अक्षय तृतीया पर चंदन महोत्सव मनाया गया। इसके साथ ही प्रभु की ग्रीष्म ऋतु के अनुसार विशेष शीतल सेवा आरम्भ हो गई। अक्षय तृतीया से ही ठाकुर जी की राग, भोग और श्रृंगार सामग्री में भी बदलाव किया गया। प्रभु की सेवा में मध्यान्ह काल और संध्या काल में निज मंदिर में जल से छिड़काव और फव्वारे चालू कर दिए गए। सेवा का यह क्रम रथ यात्रा तक चलेगा। इस दौरान भक्तों ने दर्शन करते हुए मथुराधीश प्रभु के जयकारों से आसमान गूंजा दिया। चंदन के ठाडे वस्त्र, मोती, हीरा एवं स्वर्ण के कंठहार, बाजूबंद, पौची, हस्त सांखला, रेशम, मुद्रिका से सजे धजे मथुराधीश प्रभु की मनमोहक स्वरुप को निहारने के लिए भक्तों का तांता लगा रहा। मोती के पदक के ऊपर मोती की माला, रत्न जटित कनक थार में प्रभु का स्वरुप आकर्षक लग रहा था।

अक्षय तृतीया पर प्रातःकाल शंखनाद कर श्वेत केसर की किनारी के चंदवा आदि बांधे गए। मंदिर के सभी प्रमुख द्वारों की देहलीज में पूजन कर हल्दी से लीपी गई। आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाली छोड़ी गई। प्रभु की सेवा में श्वेत आधार वस्त्र पर चंदन और केसर की किनार वाली पिचाई की सजावट की गई। श्वेत मलमल के केसर की किनारे वाली पिछवाई धराई गई। इस दौरान निज मन्दिर में “अक्षय तृतीया अक्षय… देख सखी गोविंद के चंदन… पिछोरा प्रकृति को कटी.. मेरे गृह चंदन अति कोमल.. रंग गोविंद महल पोधे” सरीखे कीर्तन गूंज रहे थे।

प्रथम पीठ युवराज मिलन बावा ने बताया कि अक्षय तृतीया से त्रेतायुग का आरंभ हुआ था। अक्षय- तृतीया ऐसी तिथि है जिसका क्षय नहीं होता है। ऐसे में, आज के दिन पुण्य का क्षय नहीं होता है। पुष्टिमार्ग वास्तव में अक्षय परंपरा का मार्ग है। ऋतुओं के परिवर्तन के समय प्रभु के सुख की पूर्ण आराधना की जाती है।उष्णकाल में उत्तरोत्तर वृद्धि होने के साथ ही प्रभु के सुख में भी उसी क्रम में वृद्धि होती रहती है। जिससे श्री ठाकुरजी को उष्ण का अनुभव न हो। प्रभु सुखार्थ सूक्ष्म सूक्ष्मता से सेवाक्रम अद्भुत है। आखा तीज से पुष्टिमार्ग में भी चंदन यात्रा की शुरुआत होती है। आज से उष्णकाल एक सोपान और वृद्धि होती है। मूलतः आज से प्रभु को चंदन धराया जाता है।
अक्षय-तृतीया के चंदन की एक विशेषता यह भी है कि आज से भगवान को मिलने वाले चंदन की लकड़ी मलयगिरि पर्वत में भी मिश्रित होती है। इसमें केशर की मात्रा विशेष होती है। प्रभु को चंदन धारण करने का भाव यह है कि प्रभु-भक्त अपनी विरहभावना निवेदन करते हैं। चंदन की शीतल सेवा अंगीकार करा प्रभु के दर्शन कर अपने हृदय में शीतलता का अनुभव करते हैं।

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