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अक्षय तृतीया पर 3500 समाजजनों व अन्य समाज के लोगों ने इक्षु (गन्ने) रस का पान कर धूमधाम से मनाया

संजय कुमार

कोटा, 10 मई। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का जन्म चैत्र कृष्ण नौवीं के दिन सूर्योदय के समय हुआ। भगवान ऋषभनाथ (आदिनाथ ) ने ही विवाह-संस्था की शुरुआत की और प्रजा को पहले-पहले असि (सैनिक कार्य), मसि (लेखन कार्य), कृषि (खेती), विद्या, शिल्प (विविध वस्तुओं का निर्माण) और वाणिज्य-व्यापार के लिए प्रेरित किया। कहा जाता है कि इसके पूर्व तक प्रजा की सभी जरूरतों को कल्पवृक्ष पूरा करते थे। उनका सूत्र वाक्य था- ‘कृषि करो या ऋषि बनो।’आदिनाथ भगवान को कर्मो के वश एक वर्ष तक निरआहार रहना पड़ा। राजा श्रेयांश के राज्य हस्तिनापुर पहुंचे।, इस दिन जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ ) ने राजा श्रेयांस के यहां इक्षु रस का आहार लिया था, जिस दिन तीर्थंकर ऋषभदेव का आहार हुआ था, उस दिन राजा श्रेयांस के यहां भोजन, अक्षीण (कभी खत्म न होने वाला ) हो गया था। उस दिन वैशाख शुक्ल तृतीया थी। अतः इस तिथि को अक्षय तृतीया कहते हैं। जैनधर्म के अनुसार भरत क्षेत्र में इसी दिन से आहार दान की परम्परा शुरू हुई। यह दिन बहुत ही शुभ होता है, इस दिन बिना मुर्हूत निकाले शुभ कार्य संपन्न होते हैं। ऋषभनाथ को कैवल्य ज्ञान (भूत, भविष्य और वर्तमान का संपूर्ण ज्ञान) प्राप्त हुआ। वे जिनेन्द्र बन गए। जैनधर्म के अनुयाई इसे दान दिवस के रूप में मानते हे

पुण्योदय अतिशय क्षेत्र नसिया जी दादाबाड़ी कोटा के अध्यक्ष जम्बू जैन सर्राफ बताया कि मन्दिर में मांगलिक क्रियाओं के साथ बेदी से विहार करके 24 चांदी के श्रीजी व विधि नायक आदिनाथ भगवान सहित 25 भगवान महायज्ञनायक, यज्ञनायक इन्द्र श्रावक श्रेष्ठीयो के द्वारा विहार करके पांडूशिला पर श्रीजी विराजित हुए उसके बाद 108 रिद्धि कलश शांति धारा जलाभिषेक और इन्द्र-इन्द्राणियों द्वारा अष्टद्रव्यों अर्घ्य समर्पित, भगवान को पुष्पांजलि अर्पित की गई | फिर भगवान को विहार करके पुनः बेदी पर विराजित किया गया । विशेष पूजा-अर्चना कर भक्तामर विधान व सामूहिक रूप से भगवान की आरती की गई।

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