देश

विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की दौड़ में शामिल हो प्रदेश के विश्वविद्यालय

संजय कुमार चौबीसा- विशेष आलेख

कोटा, 09 नवम्बर। देश की नई राष्ट्रिय शिक्षा नीति में भारत के उच्च शिक्षा के विकास की महत्वाकांक्षी योजना के फ्रेमवर्क का प्रस्ताव रखा गया है, जिसके तहत वर्ष 2030 तक देश की उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण होना है। उच्च शिक्षा का यह अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत में शिक्षा के क्षेत्र में नई क्रांति लेकर आएगा। भारत की कई उच्च शिक्षण संस्थाओ ने अंतर्राष्ट्रीयकरण को अंगीकार करने की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं। भले ही भारत में उच्च शिक्षा का ढांचा बहुत ही विशाल और आकर्षक है लेकिन आज भी देश और राजस्थान प्रदेश के विश्वविद्यालय वैश्विक मानको पर पुरे खरे नहीं उतर पाए हैं। ऐसे में हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालयों के अंतर्राष्ट्रीयकरण की मांग जोर पकड़ रही हैं। राजस्थान प्रदेश में इन सुधारो की लहर का लंबे समय से इंतज़ार किया जा रहा है, इस लहर को मजबूत करने के लिए राजस्थान प्रदेश के विश्वविद्यालयों अंतर्राष्ट्रीयकरण की रेस में शामिल होने की कवायद प्रारम्भ कर देनी चाहिए। राष्ट्रीय शिक्षा निति के मंशानुरूप प्रदेश के विश्वविद्यालयों को विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की दौड़ में शामिल होने के लिए बहुत ही मजबूती के साथ प्रयास करने होंगे। प्रदेश की उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के नक्शे पर जल्द ही प्रदेश के विश्वविद्यालयों को एक नया कदम रखना होगा, प्रादेशिक विश्वविद्यालयों की छवि से बाहर आकर हमें अब विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के स्तम्भ के रूप में पहचान स्थापित करनी होगी। तक्षशिला नालंदा जैसी शिक्षा संस्कृति एक बार पुनर्जीवित करने का प्रयास करना होगा। प्रदेश के विश्वविद्यालयों को विश्वस्तरीय बनाने के लिए सभी लोगों को मिलकर एकजुटता के साथ सक्रिय योगदान देना होगा। इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए प्रदेश के विश्वविद्यालय दीर्घकालिक दृष्टिकोण के तहत राज. प्रदेश को वैश्विक परिदृश्य में एक “वैश्विक ज्ञान महाशक्ति” का उत्कृष्ट शैक्षिक केंद्र बनने की ओर अग्रसर होंगे। भारत में अंतर्राष्ट्रीयकरण लंबे समय से अपेक्षित है। राष्ट्रिय शिक्षा नीति वैश्विक सहयोग और भारतीय शैक्षणिक संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता का मार्ग प्रशस्त कर रहा है। भारत को हमेशा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए एक वैश्विक गंतव्य के रूप में देखा गया है। हमारा भारत नालंदा और तक्षशिला जैसे पारंपरिक संस्थानों का केंद्र है, जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करते हुए इस समृद्ध शैक्षिक संस्कृति ने भारत को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दुनिया भर से लाखों लोगो को आकर्षित किया हैं। आज भी हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा व्यवस्था के पुनर्निर्माण और सामाजिक मांगो पूरा करने में पूर्ण रूप से सक्षम हैं, भारत हमेशा से ज्ञान का देश रहा है। बहरहाल, हमारे विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को अभी भी अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुकूल होने के लिए कुछ दूरी तय करनी है। और हमें उस अंतर को पाटने की दिशा में लगातार काम करना होगा। भारत की प्राचीन और समृद्ध शिक्षा तथा सांस्कृतिक विरासत में छात्रों को आकर्षित करने की जबरदस्त क्षमता थी। हमें उच्च गुणवत्ता के प्रशासनिक कार्यों, अनुसंधान में नवाचारों तथा सामाजिक कार्यों मैं गुणवत्ता बढ़ाने हेतु दूसरे विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जा रहे पैमानों तथा आयामों का अध्ययन करना होगा हमारी शैक्षणिक गतिविधियों और अनुसंधान में गुणवत्ता हेतु अंतरराष्ट्रीय पैमाने आत्मसात करना होगा। भारत में उच्च शिक्षा के परिदृश्य में पिछले कुछ दशकों में भारी परिवर्तन देखा गया है। दुनिया में सबसे बड़ी शिक्षा प्रणालियों में से एक होने के बावजूद हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीयकरण कि दौड़ में शामिल नहीं हो पाए हैं । इसके अलावा, भारत की उच्च उच्च शिक्षा प्रणाली अभूतपूर्व परिवर्तनों का सामना कर रही है। शिक्षा का परिदृश्य एक रोमांचक दौर से गुजर रहा है, अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता और होड़ पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में राजस्थान प्रदेश के विश्वविद्यालय को इस दौड़ का हिस्सा बनने के के लिए नए मानक और अपनी शैक्षिक और सांस्कृतिक साख को निर्धारित करना होंगा। आज देश में अच्छी गुणवत्ता और वैश्विक साख वाले विश्वविद्यालयों की कमी के कारण देश और प्रदेश की प्रतिभा पलायन हो रहा हैं। हमारे देश के शीर्ष नीतिकारो ने विश्वविद्यालयों की स्थापना के पीछे एक बड़ा लक्ष्य ये निर्धारित किया गया था कि, देश की आम जनता को कम लागत में अच्छी उच्च शिक्षा प्रदान की जा सके, उनकी यह दूरगामी एवं कल्याणकारी सोच भारत के समाज के सभी वर्गों और ख़ास तौर पर कमज़ोर तबक़े के लोगों को शिक्षा के बराबरी के अवसर देने और जीवन में उन्हें आगे बढ़ने देने के समान अवसर देने की अवधारणा से मेल खाती है । यहाँ यह कहना उचित होगा कि भारत में दूसरी पीढ़ी के आर्थिक सुधारों के साथ-साथ उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और इसका अंतरराष्ट्रीयकरण एक सही दिशा में उठाया गया स्वागत योग्य क़दम है जो भारतीय विश्वविद्यालयों के सफलता की संभावनाओं के सभी द्वार खोलेगी । जैसे-जैसे उच्च शिक्षा क्षेत्र विकसित और व्यापक होता जा रहा है, विश्वविद्यालयों को शैक्षिक प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में काम करने की आवश्यकता बढ़ी हैं। प्रदेश में उच्च के अंतर्राष्ट्रीयकरण से उद्योग जगत की बढ़ती मांगों और कॉर्पोरेट जगत की तकनीकी को पूरा करने के लिए समग्र शिक्षण बुनियादी ढांचे और सुविधाओं का निर्माण होगा। हर साल विश्वविद्यालयों से निकालनी वाली बेरोजगारों की फौज को अंतर्राष्ट्रीयकरण के माध्यम से बहुत प्रभावित किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीयकरण से पूंजी, शिक्षा प्रौद्योगिकी में नवीनतम विकास, नवाचार और संस्थान की गतिशीलता में सुविधा होगी, जिसकी भारत में वर्तमान में कमी है। ये कारक भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच प्रतिस्पर्धा और नवाचार को बढ़ावा दे सकते हैं। हमारे ही देश के अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय विद्यार्थियों का प्रतिभा पोषण और अंतरराष्ट्रीय डिग्री हासिल करने में मददगार साबित होंगे। शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ के रूप में प्राय: यह देखा गया है की कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षा के बहु सांस्कृतिक वातावरण के संपर्क के कारण ऐसे माहौल के विद्यार्थी उत्कृष्ट क्षमता और व्यापक बौद्धिकता के साथ अच्छा प्रदर्शन करते हैं। शिक्षा नीति के सुधारों के माध्यम से भारत में विश्व स्तरीय शिक्षा को बढ़ावा देने की हमारे नीति निर्माताओं के मंशा विश्विद्यालयों के उच्च सकल नामांकन के लिए एक सकारात्मक वातावरण तैयार करेगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि राजस्थान प्रदेश के विश्वविद्यालय वैश्विक शिक्षा में मौजूदा रुझानों को आत्मसात करें और इस तरह के नए उपाय निश्चित रूप से हमारे देश की प्रगति और इसके आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास के लिए फायदेमंद साबित होंगे। हमें प्रदेश में उच्च शिक्षा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने के लिए विश्व स्तर के विश्वविद्यालयों का एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो राजस्थान प्रदेश में उच्च शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण के साथ-साथ देश और विदेश में संस्थागत प्रतिबद्धता को सुनिश्चित करेगा। ताकि भारत उच्च एवं तकनीकी शिक्षा का आकर्षक गंतव्य बन सके। विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय की परिकल्पना गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा के माध्यम से ज्ञान की गतिशीलता, राष्ट्र के सामाजिक -आर्थिक विकास हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है। उच्चतर शिक्षा में गुणवत्ता और मानकों का निर्धारण एक चुनौती रही है। अब भारत में विश्वविद्यालय और नीति निर्माता अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग पर ध्यान दे रहे हैं। हमें भी अपने विश्वविद्यालयों को नवाचार, आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और उद्यमिता के लिए उत्प्रेरक बनाने की आवश्यकता है। हमें प्रदेश में ही विश्‍वस्‍तरीय, भविष्‍योन्‍मुखी शिक्षा उपलब्‍ध कराने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। हमारा उद्देश्‍य बहुमुखी रूप से कुशल ऐसे नेतृत्‍वकर्ता तैयार करना है जो विचारशील व नवोन्‍मेषी होने के साथ-साथ नैतिक आचरण वाले व समानुभूतिशील हों। विश्वविद्यालयों को वर्तमान चुनौतियों और भविष्य की उद्योग की जरूरतों के लिए छात्रों को तैयार करने के लिए आवश्यक उद्योग-अकादमिक सहयोग के माध्यम से हमारे देश के भावी कार्यबल के लिए शिक्षित वातावरण में क्रांति लानी होगी। हमें वैकल्पिक संकायों से संबंधित अध्ययनों तक पहुंच प्रदान करते हुए छात्रों के लिए एक समग्र शिक्षण मंच बनने की योजना पर काम करना होगा। इससे विद्यार्थियों को नए युग की दक्षताओं को विकसित करने और उद्यमशीलता की सोच को विकसित करने में मदद मिलेगी ताकि वह समाज के सामने आने वाली जटिल चुनौतियों को हल कर सकें। शिक्षा का परिदृश्य लगातार विकसित होने के साथ, शिक्षा के लिए एक गतिशील और सशक्त दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो व्यवसाय से परे हो और विश्व स्तर पर उद्योग की तकनीकी मांगों के साथ सम्‍मिलित हो। इसके अनुरूप विश्वविद्यालय एक समग्र शैक्षिक और सीखने का अनुभव प्रदान करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए जिसमें विश्लेषणात्मक और नेतृत्व वाली सोच,मात्रात्मक और रचनात्मक समस्या को सुलझाने के कौशल और नवाचार और उद्यमशीलता के लिए स्थान हो। यह देश में उच्च शिक्षा के स्तर सुधारने की परिकल्पना को ओर सशक्त करेगा। विश्व के कई देशो में इस प्रकार से विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयो का सृजन हुआ है और अब देश में भी ऐसा ही हो रहा है। विश्वस्तरीय होने से ना केवल शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि इससे संपूर्ण शिक्षा क्षेत्र अभूतपूर्व क्रांति का जन्म भी होगा।

हमें अपने विश्वविद्यालयों की ख्याति उच्च शिक्षा के प्राचीन संस्थानों नालंदा और तक्षशिला के समान बढानी होगी ताकि दुनिया के विभिन्न हिस्सों के छात्र उच्च शिक्षा के लिए राजस्थान के विश्वविद्यालयों को प्राथमिकता दें। हमें इसमें आने वाली चुनौतियों को हल करने की दिशा में भी है काम करना होगा। गुणवत्तापरक उच्च शिक्षा ज्ञान की गतिशीलता, राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु बहुत महत्त्वपूर्ण है। नवप्रवर्तक और भविष्योन्मुखी विश्वविद्यालय इसके पीछे की प्रेरक शक्तियां है। भारतीय उच्चतर शिक्षा प्रणाली ने समय के साथ अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्धी श्रेष्ठता खो दी है। इसलिए भविष्य के विश्वविद्यालयों को राष्ट्र की वृद्धि और विकास के ऐसे केंद्रीय आधारस्तंभ बनना होगा जो न केवल बुद्धिमत्तापूर्ण लोगों को विकसित करें बल्कि प्रखर बौद्धिकता का भी विकास करें। हमारे विश्वविद्यालयों को सक्रिय शिक्षण और अनुसंधान स्थलों में परिवर्तित करना ही होगा, जो नवप्रवर्तन और नए विचारों के लिए लांच पैड की तरह काम कर सकें। शिक्षा क्षेत्र की आधारभूत भूमिका को भी रेखांकित करते हुए यदि भारत को उच्चतर वृद्धि दर हासिल करनी है और मानव विकास सूचकांक पर अपनी स्थिति बेहतर बनानी है, तो देश के शिक्षा क्षेत्र को बहुत सावधानी से अपेक्षित सुधारों को अमलीजामा पहनाना होगा। हमें सिंहावलोकन करते हुए हमारे विश्वविद्यालयों के भविष्य पर विचार करना होगा जो हमें राष्ट्र निर्माण हेतु संस्थाओं के विकास में योगदान हेतु सक्षम और सशक्त बनाएगा। उच्चतर शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे अवसर सृजित कर हमारे प्रदेश के विश्वविद्यालय भावी छात्रों को राजस्थान प्रदेश में ही विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों का अनुभव प्रदान करेंगे। प्रदेश के विश्वविद्यालयों को बौद्धिक दर्जा और प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कई अनिवार्य सुधार करने होंगे। इस योजना से भारतीय छात्रो को देश में ही विश्वस्तरीय शिक्षा और अनुसंधान सुविधा प्राप्त हो सकेगी। इस संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता ही कि विश्वविद्यालयों की दशा-दिशा सुधारने की सख्त जरूरत है। उच्च शिक्षा जगत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा ने शिक्षा प्रणाली पर नया दृष्टिकोण अपनाने की संभावनों को बल दिया है। विश्वविद्यालयो को एक ऐसी युवा-पीढ़ी का निर्माण करना होगा जो समग्र व्यक्तित्व के विकास के साथ रोजगार-कौशल व चारित्रिक-दृष्टि से विश्वस्तरीय हो ऑयर यही शैक्षिक-व्यवस्था विश्वस्तरीय माहौल का सृजन करेगी। अब समय आ गया है कि राज्य के विश्वविद्यालयों को परम्परागत परंपराओं से बाहर निकलकर विकसित देशों के विश्वविद्यालयों की अग्रणी पंक्ति में शामिल होना होगा यह समय और व्यवस्था की मांग है इसे हम सभी को स्वीकारना होगा। हमें यह संकल्पना विकसित करनी होगी की है हमारे विश्वविद्यालय अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपना नाम दर्ज करें इसके लिए हर हितधारक, शिक्षक, विद्यार्थी की सकारात्मक ऊर्जा का अधिकतम उपयोग किया जाना चाहिए।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button