राष्ट्रीय दशहरा मेला 2024

नगर निगम कोटा उत्तर- दक्षिण के कांग्रेसी पार्षदों ने दशहरे मेले में कई सांस्कृतिक, धार्मिक व खेल नहीं होने पर ज्ञापन दिया

संजय कुमार

कोटा, 30 अगस्त। कोटा में आयोजित होने वाले दशहरा मेले में सांस्कृतिक, धार्मिक व खेलो के कई आयोजन नहीं होने पर कोटा उत्तर व दक्षिण नगर निगम के सभी कांग्रेसी पार्षदों ने मेला अध्यक्ष को ज्ञापन दिया। ज्ञापन में कहां गया कि दशहरा मेला, कोटा का ऐतिहासिक महत्व है। इस दशहरा मेला के आयोजन के लिए पूरे हाडौती की जनता पूरे वर्ष बेसब्री से इन्तजार करती है एवं दशहरा मेला में होने वाले समस्त आयोजनों में हाडौती की पारम्परिक, संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। मेले में होने वाले समस्त आयोजन हमारे साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक होते है। ऐसे में सभी धर्मों एवं मजहब के लोगों का दशहरा मेले से आत्मिक लगाव रहता है।

इसरार मोहम्मद, पार्षद

ज्ञापन में कहा कि वर्तमान मेला समिति द्वारा जिस तरह से दशहरा मेले में कुश्ती, कव्वाली, वुशू, शहर में अलग-अलग स्थानों पर होने वाली रामलीलाए एवं रामकथाओं का आयोजन नहीं कराने का निर्णय लिया गया है, जो शहर की जनता के लिए काफी निराशाजनक है।

मेला दशहरा में कव्वाली का कार्यक्रम हमेशा से देश भक्ति व आपसी भाईचारे को बढ़ाने वाला रहा है, जिसे सभी सम्प्रदाय के लोग पसन्द करते रहे है। इसी तरह से शहर में अलग-अलग स्थानों पर होने वाले रामलीलाए एवं रामकथाएँ शहर के लाखों नागरिकों को इस राष्ट्रीय पर्व पर भक्ति के माध्यम से जोडने का कार्य करती रही है। इसके अलावा खेलों को बढावा देने के लिए कोटा मेला दशहरा कई वर्षों से कुश्ती व कुछ वर्षों से वुशू का आयोजन कराती आ रही है। इन कार्यक्रमों में देश व प्रदेश के खिलाडी आकर कोटा मेला दशहरा का मान-सम्मान बढाते है। इस आयोजन के माध्यम से कोटा मेला दशहरा खेलो को बढावा देने के लिए हमेशा प्रोत्साहन देता रहा है।

लेकिन जिस तरह वर्तमान मेला समिति कोटा शहर की जनता की जनभावनाओं के विपरित तुगलकी निर्णय लेते हुए रामलीलाए, रामकथाएँ, कव्वाली, कुश्ती, वुशू आदि कार्यक्रमों को ना कराने का निर्णय लिया गया है, जो काफी निन्दनीय है।

पार्षदों ने कहा समस्त मेला समिति से यह मांग है कोटा रियासतकालीन मेला दशहरा के वास्तविक स्वरूप एवं परम्पराओं को बनाए रखने के लिए, लिए गए उक्त सभी निर्णयों पर पुर्नविचार कर निर्णय वापस लेवे व सभी कार्यक्रम आयोजित कराये जावें, जिससे कोटा मेला दशहरा की पारम्परिक पहचान बनी रहे।

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