भक्तों का सम्मान व सुरक्षा प्रभु को अपने सम्मान से अधिक प्रिय है — संत चिन्मय दास महाराज
संजय कुमार
कोटा, 18 अप्रैल । श्री पिप्पलेश्वर महादेव मंदिर के “षष्ठम प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव (पाटोत्सव) के तहत श्री भक्तमाल कथा में गुरूवार वृंदावन धाम के प्रख्यात संत चिन्मय दास महाराज जी के मुखारविंद से सैकड़ों भक्तों ने श्री भक्तमान की कथा सुनी और उनकी भक्ति की साधना व तपस्या से श्रृद्धा से उनके हाथ नमन को जुड़ गए।
प्रवचन का प्रारंभ करते हुए चिन्मयदास जी महाराज ने कहा कि हरि अनंत हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनंत है। सब संत लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं।प्रभु के सुंदर चरित्र करोड़ों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते। इस संसार में आपकी मदद के लिए जो हाथ उठते है वह प्रभु की इच्छा से होता है। कथा कहा कि जब भीष्म ने महाभारत के युद्ध में किसी से हारते हुए नहीं दिख रहे थे। अर्जुन भी भयभीत हो चुका था,तो कृष्ण रथ का पहिया उठाकर अपनी प्रतिज्ञा तोडेन लगे। अुर्जन ने कहा कि यदि आप अपना वचन तोड़ेगे तो अनर्थ हो जाएगा। कृष्ण ने कहा कि मुझे मेरे भक्तो के सम्मान व सुरक्षा अपने वचन से अधिक प्रिय है।
कलियुग योग न यज्ञ न ज्ञाना
संत चिन्मय दास महाराज जी महाराज ने कहा कि त्रेता में यज्ञ के कठिन नियम थे उस में यज्ञ के गाय जिससे घी प्राप्त होता था उसका दूध भी किसी को नहीं दिया जाता है। कलयुग में मनुष्य को चर्बी युक्त घी से हवन करते है ऐसा हवन निष्फल होता है। उन्होने कहा कि प्रसाद भी मिलावट का होता और भक्त तो अधिक समय अपने आसान तक नहीं भेट सकता तो वह हवन कैसे पूरा करेंगा। परन्तु सतयुग में तपस्या से त्रेता में यज्ञ व द्वापर में उपासना से जो फल प्राप्त होता था वही फल कलयुग में केवल नाम स्मरण के प्राप्त हो जाता है। भगवान का नाम ही आधार है। इस अवसर पर चिन्मयदास जी ने हरि नाम नहीं तो जीना क्या……अमृत है हरि नाम जगत में …गा कर सभी भक्तो को मंत्रमुग्ध कर दिया।